Thursday, December 31, 2015

तुम कैसी यशोधरा हो,मेले को ही लील गयी?

ग्वालियर को जिस सिंधिया घराने ने देश भर में अपनी उदारता और दूरदृष्टि के जरिये पहचान दी ,उसी ग्वालियर की एक ऐतिहासिक पहचान'ग्वालियर व्यापार मेले' को सिंधिया घराने की ही श्रीमती यशोधरा राजे ने धूल में मिला दिया. श्रीमती यशोधरा राजे सिंधियान प्रदेश की उद्योग मंत्री होतीं और न ये मेला धूल में मिलता .श्रीमती सिंधिया के त्रियाहठ के आगे पार्टी के लौह पुरुष केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह भी बौने साबित हुए और पूरा शहर मेले को बर्बाद होते देख आहें भरते देखता रह गया .
मै ये बात इस लिए लिख रहा हूँ ,क्योंकि जानता हूँ की ग्वालियर का कोई अखबार इतने सख्त लहजे में ये कड़वी सच्चाई जनता के सामने नहीं रखेगा . आज वर्ष 2015 का आखरी दिन था और ग्वालियर का व्यापार मेला उजाड़ पड़ा हुआ था .मैंने इस मेले को नुमाइश से व्यापार मेले में तब्दील होते देखा है और आज मै ही इस व्यापार मेले को दोबारा नुमाइश में तब्दील होते देख कर आहत अनुभव कर रहा हूँ.
ग्वालियर मेले को व्यापार मेले में तब्दील करने का सपना सिंधिया घराने के माधवराव सिंधिया ने तब देखा था जब वे पहली बार ग्वालियर से सांसद चुने गए. उन्होंने सपना देखा ही नहीं बल्कि उसको आकार भी दिया और वे ही दिल्ली के व्यापार मेले के अध्यक्ष मोहम्मद यूनुस को लेकर ग्वालियर आये थे ,एक जमाना था जब इस मेले में केंद्रीय और राज्य स्तरीय प्रदर्शनियां आकर्षण का मुख्य केंद्र होतीं थीं,एक जमाना ये है की अब इस मेले में स्थानीय स्तर की प्रदर्शनियों का भी टोटा है. सिंधिया माधवराव के प्रयास से मेला परिसर में स्थायी शिल्पबाजार बना.तीन करोड़ की लागत की इस परियोजना का एक ही भाग पूरा हो सका,बाद के सांसद और मंत्री इसे पूरा नहीं करा पाये.शिल्प बाजार मेले की जान होता था लेकिन इस बार अभी तक इसका कोई आता-पता नहीं है. 
स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के प्रयास से इस मेले को कर छूट का तोहफा भी मिला लेकिन बाद में इसे कांग्रेस की ही सिंधिया विरोधी सरकार ने वापस ले लिया.भाजपा की सरकार तो इस मेले को अपनी और से कुछ देने को राजी ही नहीं हुई.मेला परिसर में फेसिलिटेशन सेंटर भी माधव राव सिंधिया केप्रयास से बना ,बाल रेल वे ही लेकर आये.ऑटो मोबाइल सेक्टर,इलेक्ट्रानिक सेक्टर हाथ जोड़ कर आग्रह पूर्वक लाये गए,लेकिन अब यहां कुछ भी नहीं है. आयोजकों की हठधर्मिता और सरकार की बेरुखी ग्वालियर व्यापार मेले को चौपट करने पर जैसे आमादा है. नौकरशाही उद्योग मंत्री के आगे हाथ बांधे खडी है. मंत्री जी मेले का उद्घाटन १६ दिसंबर को करवाना चाहतीं थीं जो नामुमकिन था,आज भी मेले का उद्घाटन करना मजाक उड़ाने जैसा ही है.मेले की पारम्परिक खान-पान की दुकानें नदारद हैं,इलेक्ट्रानिक सेक्टर के न आने के बारे में मैंने खुद दिल्ली में उद्योग मंत्री श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया को इत्तला दी थी ,उन्होंने अपने प्रमुख सचिव बीएल कांताराव को इलेक्ट्रानिक सेक्टर के व्यापारियों से बात करने को कहा भी था लेकिन कुछ नहीं हुआ ,अंतत:मेला वीरान हो गया .
आज वीराने मेले में केवल बिजली की रौशनी भर है ,चहल-पहल नदारद है जो की नववर्ष की पूर्व संध्या पर होती ही थी,इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?स्थानीय सांसद नरेंद्र सिंह तोमर दूसरों की तो कहें क्या अपने ही विभाग की प्रदर्शनी मेले में नहीं लगवा सके,खुद उद्योग विभाग की प्रदर्शनी कआ कोई आता पता नहीं है. संघस्थ की प्रदर्शनी भी अभी तक आई नहीं है. इससे साफ़ जाहिर है की सरकार मिलकर इस मेले को समाप्त करना चाहती है. यदि सरकार बारह साल में लगने वाले सिंहस्थ पर करोड़ों रूपये वार सकती है तो साल -दर साल लगने वाले ग्वालियर व्यापार मेले को दस-पचास करोड़ का अनुदान क्यों नहीं दे सकती?इतनी रकम तो सिंहस्थ में आयोजक कमीशन में खा जाते हैं .
ग्वालियर व्यप्पर मेले के पास अपना प्राधिकरण है लेकिन अध्यक्ष नहीं है.दो साल से नहीं है,क्योंकि उद्योग मंत्री की पसंद का अध्यक्ष भाजपा में दिया लेकर खोजने से नहीं मिल रहा और स्थानीय सांसद जिसे प्राधिकरण का अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं उसके लिए राजे साहिबा राजी नहीं हैं.ऐसे में नौकरशाह मेला चला रहे हैं,जिन्हें जनाकांक्षाओं से कोई लेना देना नहीं है. दुर्भाग्य ये है की शहर ही नहीं बल्कि अंचल की इस सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा.विपक्ष में भी ऐसे लोग बैठे हैं जो सीधे यशोधरा राजे से नहीं टकरा सकते और जनता की तो जैसे अब कोई हैसियत रही नहीं .
मुझे आज मेला भर्मण karte हुए अहसास हुआ जैसे कहीं आसपास स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की आत्मा बदहवास सी भटक रही है और अपने एक सपने को अकाल मौत मरते देख विलाप कर रही है,कह रही है की -दुष्टो अपनी विरासत को बचा लो,बचा लो .
written by राकेश अचल

Wednesday, August 5, 2015

रतनगढ़ माता मंदिर के लिये देश का विशालतम घण्टा तैयार संभाग आयुक्त ने लिया जायजा

ग्वालियर 03 अगस्त 2015/ संभाग के दतिया जिले के सुरम्य पर्वतीय एवं वनांचल क्षेत्र में स्थित सुप्रसिद्ध रतनगढ़ मंदिर के लिये देश का विशालतम घण्टा बनकर तैयार हो गया है। जल्द ही शुभ मुहूर्त में यह घण्टा रतनगढ़ माता मंदिर में विधि विधान के साथ स्थापित किया जायेगा। संभाग आयुक्त श्री के के खरे ने आज आईटी पार्क के समीप स्थित प्रभात राय के स्टूडियो में पहुँचकर घण्टे का जायजा लिया।
मालूम हो इस घण्टे का निर्माण श्रृद्धालुओं की भावनाओं को ध्यान में रखकर संभाग आयुक्त श्री खरे की पहल पर किया जा रहा है। इस घंटे के निर्माण में खास बात यह रही कि इसमें इन श्रद्धालुओं, भक्तजनों का अंश व आस्थायें शामिल की गई हैं, जो इस मंदिर में पहले छोटे-छोटे घंटे चढ़ा कर गये हैं । श्री खरे ने बताया कि रतनगढ़ माता मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में जमा हो गये घंटों से ही इस विशाल घंटे को तैयार कराया गया है। पहले इन छोटे घंटो को नीलाम कर दिया जाता था ।
मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश सहित अन्य समीपवर्ती राज्यों के श्रद्धालुओं के लिये आस्था का केन्द्र रतनगढ़ माता मंदिर परिसर को आकर्षक बनाने के लिये वास्तुविद् की सलाह से कार्य योजना बनाई गई है। मंदिर परिसर में विभिन्न विकास कार्यों के लिये स्थान तय करने के बाद कुछ स्थान बच रहा था । ट्रस्ट के सदस्यों एवं वास्तुविदों की सहमति से इस खाली स्थान पर श्रद्धालुओं की भावनाओं के अनुरूप घंटा स्थापित करने का निर्णय लिया गया है।
1935 किलोग्राम वजनी और 7 फीट ऊँचा है घण्टा
मूर्तिकार श्री प्रभात राय ने बताया कि यह घण्टा लगभग 1935 किलोग्राम वजनी है। इसकी ऊँचाई 7 फीट और सबसे नीचे के हिस्से की गोलाई यानि परिधि 15 फीट है। घण्टे में पवित्र ऊँ एवं स्वास्तिक के 18-18 चिन्ह उकेरे गए हैं। पूरे घण्टे में 9 रिंग हैं। साथ ही 9 देवियों के 9 अंकों को ऊँचाई-गोलाई, ऊँ, स्वास्तिक, प्राचीनकाल से चले आ रहे माता मंदिर के शिल्प को दर्शाते चारों दिशाओं के शेर, त्रिशूल, बैल के सींग आदि पवित्र चिन्हों की कारीबरी देखते ही बनती है।
मीठी धुन से गुँजायमान हुआ पूरा वातावरण
संभाग आयुक्त श्री के के खरे ने आज जैसे ही प्रभात राय स्टूडियो में चैन खींचकर घण्टे को बजाया तो उससे निकली मीठी-मीठी धुन से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा। इसे सुखद संयोग ही कहेंगे कि उसी समय स्टूडियो के आस-पास रिमझिम फुहार से वातावरण में शीतलता छा गई। रतनगढ़ माता मंदिर में जब घण्टे की मीठी-मीठी धुन गूँजेगी, तो वहाँ की सुरम्य वादियों में उठने वाली गूँज का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। मूर्तिकार श्री प्रभात राय ने बताया कि मीठी धुन निकले इसके लिये अत्यंत मँहगी धातु टिन घण्टे में इस्तेमाल की गई है। उन्होंने बताया कि घण्टे में 82 प्रतिशत वेलमेटल इस्‍तेमाल हुई है, जिसमें 60 प्रतिशत तांबा और 32 प्रतिशत जस्ता, शीशा व रांगा शामिल है। इसके अलावा 18 प्रतिशत टिन का इस्तेमाल हुआ है।