Wednesday, December 18, 2019

Tansen Samaroh 2019: Performances by Abhishek Gawade, Panchanand, Sagar Morankar, Meeta Pandit, Lawkiya Walasi & Raja Mansingh Tomar Music & Arts University












तानसेन समारोह-2019
सर्द हवाओं ने पहने सुरों के लिबास
समारोह के दूसरे दिन की प्रातःकालीन सभा में विश्व संगीत और मीता पंडित के गायन ने
रसिको को किया मुग्ध

ग्वालियर 18 दिसम्बर 2019/ संगीत के मुरीदों के लिए आज का दिन अदभुत रहा। मौसिकी के बादशाह तानसेन की याद में यहां शुरू हुए सुरों के जलसे के दूसरे दिन की सुबह की संगीत सभा रसिको को सुखद अहसासों से सराबोर कर गई। सभा में सुर साज़ के कई रंग देखने को मिले।सर्द और सबनमी सुबह में जब विभास और अहीर भैरव जैसे रागों के सुर उठे तो सर्दी का अहसास जाता रहा। एक बारगी लगा कि सर्द हवाओं ने भी सुरो के गर्म लिबास ओढ़ लिए।इस सभा में विश्व संगीत और ग्वालियर घराने की प्रख्यात गायिका मीता पंडित का गायन रसिकों को खूब पसंद आया।
बुधवार की प्रातःकालीन सभा राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के छात्र छात्राओं के ध्रुपद गायन से शुरू हुई। प्रातःकालीन राग विभास में निबद्ध तानसेन रचित ध्रुपद की बंदिश के बोल थे- प्रथम नाद सरस्वती।चौताल की इस बंदिश को विद्यार्थियों ने पूरे मनोयोग से गाया । पखावज पर जयवंत गायकवाड़ हारमोनियम पर विवेक जैन व सारंगी पर हमीद खां ने साथ दिया।
सभा की विधिवत शरुआत इंदौर से तशरीफ़ लाईं श्रीमती रसिका अभिषेक गावड़े के गायन से हुई। रसिका जी ने राग अहीर भैरव से गायन की शुरुआत की। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश कीं। एकताल में निबद्ध विलम्बित बंदिश के बोल थे- गोकुल गांव के छोरा" जबकि तीनताल में  द्रुत बंदिश के बोल थे-मोहे छेड़ो न गिरधारी" दोनों ही बंदिशों को रसिका जी ने पूरे कौशल से गाया। वे ग्वालियर की ही हैं और शुरुआती तालीम यहीं से ली। सिलसिलेवार आलापचारी के साथ राग की बढ़त करते हुए आपने बहलाबों और तानों की बेहतरीन प्रस्तुति दी। गायन का समापन उन्होंने प्रचलित भजन-" सांवरे आय जइयो" से किया। उनके साथ तबले पर मनीष खरगौनकर एवं हारमोनियम पर रचना पौराणिक ने संगत की।
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अगली प्रस्तुति पंचनाद की थी। प्रख्यात संतूर वादिका श्रीमती श्रुति अधिकारी,सितार वादिका स्मिता बाजपेई ,सारंगी वादिका गौरी बनर्जी सती तबला वादिका संगीता अग्निहोत्री,और पखावज वादिका महिमा उपाध्याय ने पंचनाद की प्रस्तुति में खूब रंग भरे। इन पांचों कलाकारों ने राग बसंत मुखारी में अपनी प्रस्तुति दी। आलाप और जोड़ से शुरू करके उन्होंने तीन गतें पेश कीं। विलम्बित गत रूपक में निबद्ध थी जबकि मध्य एवं द्रुत गत तीन ताल में निबद्ध थी। तीनों ही गतों को रागदारी की बारीकियों के साथ पेश करते हुए उन्होंने गायकी और तंत्रकारी दोनों ही अंगों का बखूबी दर्शन अपने वादन में कराया। यह प्रस्तुति अपने आप में अनूठी रही।
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अगली पेशकश में कोलकाता से आए सागर मोरानकर का ध्रुपद गायन हुआ। सागर मोरानकर सूरदास हैं और प्रख्यात ध्रुपद गायक उदय भावलकर से आपने ध्रुपद गायन की शिक्षा ली है। उन्होंने अपने गायन के लिए राग बृन्दावनी सारंग का चयन किया। नोम तोम की आलापचारी और जोड़ से शुरू करके आपने झपताल में बंदिश पेश की बोल थे- तुम रब तुम साहेब तुम ही करतार--" आने विविध लयकारियों के साथ इस बंदिश को गाया। माधुर्य पूर्ण आवाज के धनी सागर ने गमक और मींड का काम भी खूब दिखाया। आपके साथ संजय पंत आगले ने माधुर्य भरी संगत की।
सभा की चौथी कलाकार थीं ग्वालियर घराने की युवा और प्रतिष्ठित गायिका सुश्री मीता पंडित। प्रख्यात खयाल गायक कृष्णराव शंकर पंडित की पौत्री और लक्षमण कृष्णराव पंडित की यशस्वी बेटी मीता तानसेन समारोह में बुलाये जाने से बेहद अभिभूत थी। उन्होंने कहा भी कि ग्वालियर तो संहित्कारों के लिए काशी की तरह एक तीर्थ है। बहरहाल उन्होंने अपने गायन की शुरुआत राग मुल्तानी से की।संक्षिप्त आलाप से शुरू करके उन्होंने इस राग में दो बंदिशें पेश कीं। ग्वालियर घराने की खास ताल तिलवाड़ा में निबद्ध बंदिश के बोल थे- "गोकुल गांव के छोरा-- "जबकि एक ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे- "नैनन में आन बान" । मीता जी ने दोनों बंदिशें पूरे कौशल से गाईं। राग की बढ़त करने में एक एक सुर को जिस अंदाज़ में वे लगाती हैं उससे राग का स्वरूप साकार हो उठा। सिलसिलेवार गायकी में लय को बढ़ाते हुए बहलाबों की प्रस्तुति भी लाजवाब रही। इसके बाद विविधता पूर्ण तानों ने भी रसिकों को मुग्ध किया। गायन को आगे बढ़ाते हुए आपने इसी राग में तीन ताल में निबद्ध तराना भी पेश किया। गायन का समापन आपने काफी में टप्पे से किया।आपके साथ तबले पर हितेंद्र दीक्षित, हारमोनियम पर ज़मीर हुसैन खां, एवं सारंगी पर कमाल अहमद खां ने संगत की।
सभा का समापन विश्व संगीत से हुआ। इसमें ग्रीस की जानी मानी युवा कलाकार सिस्टर्स लौकिया वालासी और स्टेला वालासी ने संतुरी परअपने यहां का परंपरागत गायन और वादन पेश किया। दरअसल संतुरी एक वाद्य है। जो संतूर का ही रूप है। यह पर्शिया से होता हुआ भारत चीन ग्रीस सहित तमाम मुल्कों में पहुंचा। दोनों बहनों ने ग्रीक का  बीजांदीन संगीत पेश किया, जिसमें भारतीय संगीत के रागों की तरह ही अलग अलग स्वर रचनाएं होती है और जो ऋतुओं के हिसाब से गाया-बजाया जाता है।

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