“तानसेन
समारोह-2019”
(प्रात:कालीन
सभा 20 दिसम्बर)
सुरों के शबनमी अहसास में भीगे रसिक
ग्वालियर
20 दिसम्बर 2019/ तानसेन समारोह की चौथे दिन की प्रातःकालीन सभा सुरों के शबनमी अहसास
से सजी। इस सभा में पंडित महेशदत्त पांडेय का खयाल गायन ,बनारस के रामचंद्र भागवत का
वायलिन वादन एवं अपूर्वा गोखले एवं पल्लवी जोशी का गायन विशेष आकर्षण का केंद्र रहा।
सभा की शुरुआत ग्वालियर ध्रुपद केंद्र
के विद्यार्थियों के ध्रुपद गायन से हुई।केंद्र के गुरु अभिजीत सुखदाने के निर्देशन
में विद्यार्थियों ने राग भैरव और राग गुनकली में प्रस्तुति दी। शूलताल में भैरव की
बंदिश के बोल थे शिव आदि मद अंत-- " जबकि तीव्रा में निबद्ध गुनकली के बंदिश के
बोल थे- डमरू हर कर बाजे। इस प्रस्तुति में जगतनारायण शर्मा ने पखावज पर संगत की।
अगली
प्रस्तुति विश्व संगीत की थी। इसमें चीन की जानी मानी कलाकार ली फेंगयुन ने गुचिन वादन
किया। गुचिन चीन का चार हज़ार साल पुराना वाद्य है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर में
शुमार किया है।चीन के शास्त्रीय संगीत में जो सांगीतिक रचनाएं हैं वे डेढ़ हज़ार साल
पुरानी हैं। ली ने वीणा की तरह बजाए जाने वाले गुचिन पर दो रचनाएं ऊंचे पर्वत और बहता
पानी की प्रस्तुति दी।ली को चीन के सांगीतिक जगत में ग्रैंडमास्टर की उपाधि दी गई है।
सभा
का विशेष आकर्षण था ग्वालियर घराने के पंडित महेशदत्त पांडे का खयाल गायन। पांडे जी
ने डूबकर गाया। सुबह के राग गुर्जरी तोड़ी में संक्षिप्त आलाप से शुरू करके उन्होंने
इस राग में दो बंदिशें पेश कीं। एकताल में निबद्ध विलम्बित बंदिश के बोल थे
-"पार करोगे कब मोरी नैया हे करतार" जबकि तीनताल में द्रुत बंदिश के बोल
थे -" जिया की बात बताऊँ कौन से" आपने दोनों ही बंदिशों को पूरे कौशल और
सहजता से पेश किया। उन्होंने खांटी ग्वालियर की घराना परंपरा के अंदाज़ में जिस तरह
राग की बढ़त की उससे एक एक सुर खिलता चला गया। राग की बारीकियों और उसके स्वभाव को बरकरार
रखते हुए उन्होंने बहलाबों की शानदार प्रस्तुति दी और फिर घरानेदार तानों से महफ़िल
को परवान पर जा पहुंचाया। गायन का समापन उन्होंने कबीरदास के भजन - पाहुना दिन चारा
से किया। आपके साथ तबले पर ग्वालियर के जाने माने तबला वादक अनंत मसूरकर ने मणिकांचन
संगत की। जबकि वायलिन पर सुभाष देशपांडे और हारमोनियम पर अब्दुल सलीम खां ने संगत की।
तानपूरे पर यश देवले और मोहम्मद आरिफ ने साथ दिया।
सभा
के अगले कलाकार थे जाने माने वायलिन वादक रामचंद्र भागवत। संगीत में डॉक्टरेट रामचंद्र
लंबे समय तक आकाशवाणी के ग्वालियर केंद्र में रहे हैं। उन्होंने अपने वादन की शुरुआत
राग अल्हैया बिलावल से की। गायकी अंग से वादन पेश करते हुए आपने तीन गतें पेश की। विलम्बित
मध्यलय और द्रुत तीनों ही लय की गतें तीन ताल में निबद्ध थीं। माधुर्य और तैयारी से
भरा आपका वादन खूब पसंद किया गया। आपके साथ पुंडलीक भागवत ने ओजपूर्ण संगत की।
सभा
का समापन गायन सिस्टर्स अपूर्वा गोखले एवं पल्लवी जोशी के मणिकांचन खयाल गायन से हुआ।आपने
गायन के लिए राग गौड़ सारंग का चयन किया। आलाप के साथ शुरू करके उन्होंने इस राग में
दो बंदिशें पेश कीं। तिलवाड़ा में विलम्बित बंदिश के बोल थे-" कजरारे प्यारे तोरे
नैना सलोने मद भरे" जबकि तीन ताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे- सगरी रैन मोरी तड़पत
गइयाँ" इसी राग में आपने तीन ताल में तराना भी पेश किया। जयपुर और ग्वालियर घराने
की बारीकियों से सराबोर उनका गायन माधुर्य से भरा था। गायन का समापन भजन जय जय राम
जप नाम से किया। राग मियां की सारंग के सुरों
से सजा ये भजन खूब पसंद किया गया। आपके साथ तबले पर उल्हास राजहंस और हारमोनियम
पर विवेक जैन ने संगत की।
बेहट के लिए नि:शुल्क
बस सेवा कलावीथिका से
तानसेन
संगीत समारोह के अंतिम दिन शनिवार को प्रात: 9 बजे से बेहट में संगीत सभा का आयोजन
होगा। समारोह में शामिल होने हेतु संगीत प्रेमियों के लिए संस्कृति विभाग की ओर से
नि:शुल्क बस सेवा की व्यवस्था की गई है। बेहट के लिए बस प्रात: 7 बजे कलावीथिका से
रवाना होगी। संगीत प्रेमी कलावीथिका से नि:शुल्क बस के माध्यम से बेहट पहुँचकर संगीत
सभा का आनंद ले सकते हैं ।
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