Monday, December 23, 2019

Tansen Samaroh 2019: Performances by Helina Suters, Jayshri Savagunji, Sujata Gurav, Meeta Naag and Sharda Naad Sangeet Mahavidyalaya Ramkrishan Misson Aashram









तानसेन समारोह-2019
(अंतिम सभा 21 दिसम्बर – गूजरी महल)
गुजरी महल में सुरों ने दोहराया इतिहास

ग्वालियर 22 दिसम्बर 2019/ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अंतरराष्ट्रीय आयोजन तानसेन समारोह के अंतिम दिन की सभा में सुरों ने एक बार फिर इतिहास दोहराया। विश्व प्रसिद्ध गुजरी महल जहां कभी मृगनयनी ने तानसेन और राजा मानसिंह तोमर के सानिध्य में सुर छेड़े1 होंगे वहां आज फिर सुरों की महफ़िल सजी और उसमें देश विदेश की महिला कलाकारों ने ही प्रस्तुतियां दी।ये सभा अपने आप में अनूठी रही।
सभा का शुभारंभ शारदा नाद संगीत महाविद्यालय रामकृष्ण मिशन आश्रम के विद्यार्थियों के ध्रुपद गायन से हुआ। विद्यार्थियों ने राग मारवा के सुरों में पगी चौताल की बंदिश पेश की -" सरस्वती आदि रूप"। सभी ने बड़े सलीके से ध्रुपद पेश किया। पखावज पर यमुनेश नागर और हारमोनियम पर अनूप मोघे ने संगत की।
अगली प्रस्तुति में बेल्जियम से आईं कलाकारों ने विश्व संगीत के तहत यूरोप और अमेरिका का पारम्परिक संगीत प्रस्तुत किया। बेल्जियम की हेलिना सूटर्स व विएतरेज़ ने एक के बाद एक इंग्लिश सांग्स की प्रस्तुति दी। विएतरेज़ गिटार वादन कर रही थी जबकि हेलिना गायन पर कर रहीं थी। हेलिना ने यूरोपीय देशों के फोक संगीत और पारंपरिक पुरानी रचनाओं तथा संगीत पर काफी काम किया है। हेलिना सुपरानो यानि तार सप्तक के सांग्स गाने वाली गायिका हैं। उनकी परंपरा में गीतों में कहानियां होती हैं, दोनों इसका अपनी प्रस्तुति में बखूबी प्रदर्शन किया।
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सभा की अगली कलाकार थी भोपाल की जयश्री सवागुंजी।अपने पिता वी वी कड़सालकर से गुरु शिष्य परंपरा में संगीत सीखने वाली जयश्री ने राग शुद्ध कल्याण में अपने गायन की शुरुआत की।आलाप भरने के बाद उन्होंने इस राग में दो बंदिशें पेश कीं। एक ताल में निबद्ध विलम्बित बंदिश के बोल थे-" तुम बिनु कौन खबरिया" जबकि तीन ताल में  द्रुत बंदिश के बोल थे-" मोरा रे मोरा मान रे" दोनों ही बंदिशों को आपने पूरे मनोयोग से गाया । आपने एक तराना भी पेश किया । गायन का समापन आपने रागमाला से किया।  तीन ताल में बंदिश के बोल थे - दुर्गा माता दयानी  देवी"। जयजयवंती  भूपाली, देस सरस्वती  सूहा दुर्गा , सोहनी, ललित,दरबारी , बसंत, बहार बागेश्री, और भिन्न षडज जैसे रागों से सजी इस रागमाला को उन्होंने बड़े ही सलीके से गाया और रसिकों को सिक्त किया।  आपके साथ तबले पर मनोज पाटीदार और हारमोनियम पर संजीव कुमार सिन्हा ने संगत की जबकि सारंगी पर थे आबिद हुसैन। 
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सभा की तीसरी प्रस्तुति में धारवाड़ से पधारीं श्रीमती सुजाता गुरव का खयाल गायन हुआ। किराना घराने से ताल्लुक रखने वाली सुजाता जी ने अपने गायन के लिए राग मालकौंश का चयन किया। पकड़ से शुरू करके उन्होंने इस राग में दो बंदिशें पेश कीं। एक ताल में विलम्बित बंदिश के बोल थे- " पीर ना जानी रे" जबकि तीनताल में द्रुत बंदिश के बोल थे-" कैसो नीको लागो" । दोनों ही बंदिशों को आपने पूरी सिद्दत से गाया। राग की बढ़त का आपका ढंग अलग ही है। एक एक सुर को लगाने में वे रागदारी की बारीकियों का भी पूरा खयाल रखती हैं इससे एक एक सुर खिल उठता है। तानों की अदायगी भी बेहतरीन थी। आपने मिश्र पहाड़ी में ठुमरी पेश की । बोल थे - " लागी मोरे नैना।" इसके बाद तो महफ़िल परवान पर जा पहुंची। गायन का समापन आपने कबीरदास जी के भजन से किया। " तू तो राम सुमर"। इस भजन को आपने बड़े ही भावपूर्ण अंदाज़ में पेश किया। आपके साथ तबले पर हितेन्द्र दीक्षित , हारमोनियम पर अब्दुल सलीम खां और सारंगी पर अब्दुल मज़ीद ने संगत की।
सभा का समापन कोलकाता से पधारीं सुश्री मीता नाग के सुमधुर सितार वादन से हुआ। आपने अपने वादन के लिए राग कौशिकी कान्हड़ा का चयन किया। आलाप जोड़ झाला से शुरू करके आपने इस राग में दो गतें पेश कीं। विलम्बित और द्रुत दोनों ही गतें तीन ताल में निबद्ध थीं। मीता जी के वादन में गायिकी और तंत्रकारी दोनों ही अंगों का समावेश देखने को मिलता है। आपका वादन माधुर्य युक्त और रागदारी से परिपूर्ण था। आपके साथ तबले पर अंशुलप्रताप सिंह ने बेहतरीन संगत का प्रदर्शन किया।

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