जाड़ों के नमो-नाज़ुक लम्हों ने ओढ़ी
सुरों की गरमाहट
तानसेन समारोह की प्रातःकालीन सभा
में एक से बढ़कर एक प्रस्तुति
ग्वालियर 26 दिसम्बर 2018/ तबले और पखावज की मदमाती थाप, गायन की रसभीनी तानें
और संतूर व मोहनवीणा वादन की मीठी व मादक धुनें निकालीं तो ऐसा लगा कि मानो जाड़ों के
नर्म-नाज़ुक लम्हों ने सुरों की गरमाहट को लिबास बनाकर ओढ़ लिया है। मौका था तानसेन समारोह
के दूसरे दिन प्रातःकालीन सभा का। इस सभा में सुश्री यखलेश बघेल व श्री निर्भय सक्सेना
ने ध्रुपद व ख्याल गायकी के रंग बिखेरे तो श्री विपुल कुमार राय ने संतूर व श्री दीपक
छीरसागर ने मोहनवीणा वादन से अलग ही रंग भरे।
प्रतिष्ठित तानसेन समारोह में
बुधवार को प्रात:कालीन सभा का आगाज परंपरागत ढंग से स्थानीय शंकर गांधर्व संगीत महाविद्यालय
के ध्रुपद गायन से हुआ। यहां के विद्यार्थियों व आचार्यों ने राग " देसी"
में ध्रुपद रचना पेश की जिसके बोल थे " रघुवर की छवि सुंदर"।
आज बृजराज होरी खेलत.....
गान मनीषी तानसेन की ध्रुपद
परंपरा को आगे बढ़ा रहीं सुश्री यखलेश बघेल ने जब धमार की बंदिश " आज बृजराज होरी
खेलत " का सुमधुर गायन किया तो फिजा में पौष माह में ही फागुनी रंग बिखर गए। डागरवाणी
परंपरा के प्रतिष्ठित गायक व ग्वालियर ध्रुपद केन्द्र के गुरू श्री अभिजीत सुखदाणे की सुयोग्य शिष्या यखलेश ने राग
'गूजरी तोड़ी' को अपने ध्रुपद गायन के लिए चुना। इस राग में अलाप, मध्यलय अलाप और द्रुत
लय अलापचारी कमाल की रही। उन्होंने जलद शूलताल की बंदिश "तेरो बल प्रताप"
प्रस्तुत कर अपने गायन का समापन किया। उनके गायन में झलक रही आवाज की सुस्पष्टता व
खनकदारी ने रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस सभा के पहले कलाकार के रूप में उनकी प्रस्तुति
हुई। यखलेश के साथ पंडित संजय आगले ने पखावज से मिठास भरी संगत की।
संतूर से झरे मधु पगे सुर....
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वैसे
ही संतूर की मिठास अद्भुत होती है। देश के श्रेष्ठतम युवा संतूर वादकों में से
एक श्री विपुल कुमार राय की अंगुलियों से संतूर पर जब अखरोट की लकड़ी से बनी स्टिक थिरकीं
तो उसमें से मधु पगे मीठे-मीठे रस बरस उठे।
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उनके
संतूर वादन से झर रही मंत्रमुग्ध कर देने वाली 'लयकारी' मधुर आलाप एवं तंत्रकारी
धुन पर गजब के नियंत्रण से वशीभूत होकर संगीत रसिक अपनी सुध-बुध खो बैठे। राग की पवित्रता
एवं सौंदर्यबोध ने उनके वादन में चार चाँद लगा दिए। उन्होंने राग "अहीरी तोड़ी"
में संतूर वादन किया। यह राग " अहीर भैरव व तोड़ी राग" का मिश्रण है। इस राग
में विपुल जी ने आलाप जोड़ की अद्भुत प्रस्तुति दी। उनके साथ तबले पर विख्यात तबला वादक
श्री हितेन्द्र दीक्षित ने गज़ब की संगत की।
काश्मीर के सूफिया घराने के
प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित भजन सोपोरी के शिष्य विपुल कुमार की गिनती देश के बेहतरीन
संतूर कलाकारों में होती है । वे देश ही नहीं दुनियाभर के विभिन्न देशों में सफल प्रस्तुतियां
देकर भारतीय शास्त्रीय संगीत का जादू बिखेर चुके हैं। वर्तमान में आप म्यूजिक एण्ड
फाइन आर्ट कॉलेज संकाय दिल्ली विश्व विद्यालय में संतूर प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत
हैं।
"आली बाकी अँखियाँ जादू भरी...
"
अत्यंत मधुर और लोकप्रिय राग
" वृंदावनी सारंग" में जब अपने ग्वालियर शहर के उदयीमान युवा कलाकार
निर्भय सक्सेना ने विलंबित तिलवाड़ा ताल में बंदिश " ए पिया लागी लागी...."
का गायन किया तो घरानेदार गायकी जीवंत हो उठी। इसके बाद छोटा ख्याल "आली
बाकी अँखियाँ जादू भरी... " पेश कर रसिकों की खूब वाह वाही लूटी। उन्होंने दादरा
सुनाकर अपने गायन को विराम दिया। जिसके बोल थे " तुम साँची कहो..."।
निर्भय सक्सेना ग्वालियर, आगरा और जयपुर घराने की गायिकी पर समान अधिकार
रखते हैं। उनके गायन में तबले पर श्री गांधार राजहंस और हारमोनियम पर श्री जितेन्द्र
शर्मा ने संगत की।
निर्भय सक्सेना वर्तमान में
सुविख्यात शास्त्रीय गायक पंडित उल्हास कशालकर से संगीत की बारीकियां सीख रहे हैं।
सांगीतिक घराने में जन्मे संगीत का ककहरा अपने पिताश्री राधेश्याम सक्सेना से सीखा।
इसके बाद श्री उमेश कंपूवाले और श्री प्रभाकर गोहदकर के सानिध्य में आगे की संगीत शिक्षा
ली । उन्होंने बनारस घराने की सुप्रिसिद्ध गायिका विदुषी गिरजा देवी से ठुमरी, दादरा
एवं टप्पा जैसे पूरब अंग की गायिकी भी सीखी है।
मोहनवीणा के माधुर्य में डूबे रसिक...
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बड़ौदा
गुजरात से पधारे क्षीरसागर सांगीतिक परिवार की चौथी पीढ़ी के प्रतिनिधि श्री दीपक क्षीरसागर
ने जब मोहनवीणा के तार छेड़े तो ऐसा लगा कि प्यार की पुलक, प्रियतम का सम्मोहन और विरह
की वेदना एक साथ उमड़ पड़ी हो। जाहिर है कला रसिकों को मोहन वीणा के माधुर्य में डूबना
ही था।
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तानसेन
समारोह के दूसरे दिन की प्रातःकालीन सभा में दीपक क्षीरसागर की अंतिम कलाकार के रूप
में प्रस्तुति हुई। उन्होंने अपने मोहन वीणा वादन में राग "मधुवंती" में
तीन गतें पेश कीं। विलंबित गत झप ताल में, मध्यलय की गत आड़ा चौताल और द्रुत लय की गत
तीन ताल में बजाई। श्री क्षीरसागर ने मांड की धुन निकालकर अपने वादन का समापन किया।
ग्वालियर घराने की विशुद्ध प्रस्तुति उनके वादन में झलक रही थी। इनके साथ तबले पर श्री
रामेन्द्र सिहं सोलंकी ने कमाल की संगत की।
पुरबिया संगीत की मिठास से गूँजा प्रांगण
तानसेन समारोह के शुभारंभ दिवस
यानि मंगलवार की शाम सजी पहली संगीत सभा में देर रात आखिर में पं. रितेश - पं. रजनीश
मिश्र बंधुओं के गायन की प्रस्तुति हुई। उनके गायन से सम्पूर्ण प्रांगण पूरब अंग के
संगीत से गूँज उठा। बनारस घराने के विश्व विख्यात संगीतज्ञों की छठवीं पीढ़ी के प्रतिनिधि
ये दोनों कलाकार बंधु मधुर वाणी के धनी होने के साथ-साथ संगीत के सुरों में भी महारथ
रखते हैं। उन्होंने ख्याति लब्ध पद्मभूषण पं. राजन मिश्र एवं अपने चचा पं. साजन मिश्र
के सानिध्य में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली है। इन्होंने राग
"जयजयवंती" में बड़ा ख्याल प्रस्तुत किया, जो एक ताल में निबद्ध था। जिसके
बोल थे "पिया हम जानी ऐसी तिहारी प्रीत" । उनके द्वारा तीन ताल में निबद्ध छोटा ख्याल "सुनी से जिया न भावे...."
प्रस्तुत किया गया। इसके बाद एक तराना का गायन किया। मिश्र बंधुओं ने अपने गायन का
समापन "साध रे मन सुर को साध रे" के गायन के साथ किया। उनके साथ तबले पर
श्री रामेन्द्र सिंह सोलंकी व हार्मोनियम पर श्री धर्मेन्द्र मिश्रा ने गजब की संगत
की। तानसेन समारोह की पहली सभा में देर रात तक कला रसिक संगीत सरिता में गोते लगाते
रहे।
“तानसेन समारोह” में आज इनकी
प्रस्तुति
प्रात:कालीन सभा– 27 दिसम्बर
श्री कैलाश पवार का ध्रुपद गायन, श्री
संतोष नाहर का वायोलिन वादन, सुश्री मधुमिता नकवी का गायन एवं विश्व संगीत के तहत
श्री सारंग सैफीजादा एण्ड ग्रुप ईरान का संतूर, कमांचे व टुम्बक वादन। इस सभा के
आरंभ में तानसेन संगीत महाविद्यालय ग्वालियर की ध्रुपद प्रस्तुति होगी।
सायंकालीन सभा – 27 दिसम्बर
विश्व संगीत के तहत श्री अर्सेन
पेट्रोजियान आर्मीनिया की प्रस्तुति, श्री मोवना रामचंद्र का गायन, सुश्री कमला
शंकर का गिटार वादन व श्री राम देशपाण्डे के गायन की प्रस्तुति होगी। इस सभा की
शुरूआत भारतीय संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन से होगी।
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