Thursday, December 27, 2018

Tansen Samaroh 2018: Performance by Kailash Pawar, Madhumita Nakvi, Santosh Naahar, Tansen Sangeet Mahavidhyalya and Persion artists












(प्रात:कालीन सभा - 27 दिसम्बर)
फिज़ा में झील की लहरों की मानिद उठीं स्वर लहरियाँ
गुरूवार की प्रात:कालीन सभा में रसिक हुए मंत्रमुग्ध

ग्वालियर 27 दिसम्बर 2018/ झील में उठती लहरों की मानिद अठखेलियाँ करतीं वायोलिन से निकली मीठी-मीठी धुनें, बुलंद और सुरीली आवाज में घरानेदार गायकी। साथ ही भारतीय राग-रागनियों के साथ समागम करती पर्सियन क्लासिकल म्यूजिक (ईरान) की धुनें। यहाँ बात हो रही है भारतीय शास्त्रीय संगीत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव तानसेन समारोह के तहत गुरूवार को सजी प्रात:कालीन सभा की। इस सभा में संगीत मनीषियों ने अपने गायन-वादन से रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
तानसेन समारोह में गुरूवार की प्रातःकालीन सभा की शुरुआत पारंपरिक ढंग से तानसेन संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों और आचार्यों  द्वारा प्रस्तुत ध्रुपद से हुई। राग " जौनपुरी" और चौताल में निबद्ध तानसेन रचित बंदिश के बोल थे " नाद सुघर पुर बसायो"।
सुर सम्राट को राग विलाशखानी तोड़ी से स्वरांजलि
          गुरुवार की प्रातःकालीन सभा के पहले कलाकार के रूप में पंडित कैलाश पवार की प्रस्तुति हुई। उन्होंने अपने गायन की शुरुआत तानसेन के जमाने के राग "विलास खानी तोड़ी" से की। इस राग में उन्होंने नोम तोल की बेतरीन अलापचारी पेश की। इस राग को तानसेन परंपरा के खलीफा विलास खां ने ईजाद किया था। मधुर एवं बुलंद आवाज के धनी पं. पवार ने अपने गायन को आगे बढ़ाते हुए जब  ध्रुपद "  भोला शिव शंकर " का गायन किया तो रसिक शिव भक्ति में ओत-प्रोत हो गए। पं. पवार सुविख्यात पुष्टि मार्गीय मृदंगाचार्य पं श्री चुन्नीलाल पवार के सुपुत्र हैं।वे दुनिया के विभिन्न देशों में कई सांगीतिक प्रस्तुतियाँ दे चुके हैं। आज की प्रस्तुति मेंउनके साथ पखावज पर पंडित रविराज पवार और सारंगी पर उस्ताद आबिद हुसैन ने अच्छा साथ दिया।
वायोलिन से उठीं सुरीली लहरें....
          मिश्री से भी मीठे राग " बसंत मुखारी'' में जब हिदुस्तानी शास्त्रीय संगीत जगत के उत्कृष्ट वायोलिन वादक पं संतोष नाहर ने वायोलिन वादन किया तो मीठे-मीठे सुरों से  भरीं सुरीली लहरें हिलोरें लेने लगीं। 
          राग बसंत मुखारी दिन के रागों में बडा ही मीठा परंतु कठिन राग है। इस राग में पूर्वांग में राग भैरव  और उत्तरांग में राग भैरवी का समन्वय है। इसलिये इसे गाने के लिये बहुत रियाज की आवश्यकता होती है।
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          पं संतोष नागर ने वायोलिन वादन में राग बसंत मुखारी में विलंबित रचना तीन और द्रुत तीन ताल में प्रस्तुत कर रसिकों का मन जीत लिया। उन्होंने जब  प्रसिद्ध भजन "पायो जी मैंने राम रतन धन पायो" की धुन निकाली तो संपूर्ण प्रांगण भक्तिमय हो गया। इसी के साथ उन्होंने अपने वादन को विराम दिया। उनके साथ  विख्यात तबला वादक सलीम अल्लाह वाले ने नफासत भरी संगत की।
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"सैयां निकस गए मैं ना लड़ी थी......"
          शास्त्रीय संगीत की प्रतिभाशाली एवं समर्पित गायिका श्रीमती मधुमिता नकवी ने जब राग शुद्ध सारंग में ताल एक ताल विलंबित में बड़ा ख्याल  "पिया नहीं आये..."  खनकदार आवाज़ में गाया तो रसिकों में प्रेम व विरह वेदना हिलोरें लेने लगी। आज की प्रातःकालीन सभा में तीसरे कलाकार के रूप में उनकी प्रस्तुति हुई । उनके गायन में राग शुद्धता और अलापचारी  ने रसिकों को बांधे रखा। उन्होंने तीन ताल में  छोटा ख्याल " कैसे घर जाऊँ..."  का सुमधुर गायन किया। इसके बाद एक ताल में तराना पेश किया।
          दिन के रागों में राग शुद्ध सारंग एक बहुत ही प्रभावशाली राग है,जो  श्रोताओं पर गहरा प्रभाव डालता है। उन्होंने राग जौनपुरी में एक बंदिश पेश की । श्रीमती नकवी ने राग भैरवी में प्रसिद्ध ठुमरी " सैयां निकस गए मैं ना लड़ी थी" प्रस्तुत कर रसिकों की खूब वाह वाही लूटी। उन्होंने निर्गुणी भजन सुनाकर अपने गायन का समापन किया।
          श्रीमती मधुमिता नकवी शास्त्रीय  गायकी के साथ-साथ शास्त्रीय नृत्य में भी पारंगत है। इसलिये उनकी गायकी में नृत्य व गायन दोनों अंग का प्रभाव साफ समझ आ रहा था।उनके साथ हारमोनियम पर उस्ताद जमील हुसैन खां, सारंगी पर उस्ताद सिराज हुसैन और तबले पर श्री रामेन्द्र सिंह सोलंकी की संगत कमाल की रही।
पर्सियन संगीत के सम्मोहन में बंधे रसिक...
          रंग विरंगे परिधानों में सजे-धजे पर्सियन(ईरानी) कलाकारों ने जब अपने मुल्क के वाद्य यंत्रों से मधुर धुन निकाली तो वातावरण सतरंगी हो गया। उस पर ईरान की विख्यात गायिका सुश्री सारंग सैफीजादे के मधुर कंठ से निकल रही सुरीली तान ने रसिकों पर जादू सा असर किया। आज की प्रातःकालीन सभा के आखिर में विश्व संगीत के तहत ईरान के महिला संगीत साधकों की प्रस्तुति हुई।
          इस प्रस्तुति में ईरानी संतूर पर सुश्री निगाह जोहदी, कामेश पर सुश्री नाजनीन गनीजादे और टुम्बक पर सुश्री निलोफर मोहसनीन ने संगत की।
तानसेन समारोह में आज
प्रात:कालीन सभा – 28 दिसम्बर
          श्री गौतम काले का गायन, श्री सौरवव्रत चक्रवर्ती की सुर बहार, सुश्री ज्योति फगरे अय्यर का गायन तथा उस्ताद निसार हुसैन खाँ एवं श्री दयानेश्वर देशमुख की तबला - पखावज जुगलबंदी होगी। सभा की शुरूआत सारदा नाथ मंदिर संगीत महाविद्यालय के  ध्रुपद गायन से होगी।
सायंकालीन सभा – 28 दिसम्बर
          विश्व संगीत के तहत जर्मनी के श्री निल्गम अक्सॉय, माल्टे स्टिवीक, जॉनेस किस्टैन, बेन्जामिन स्टिवीक का गायन, फ्रेम ड्रम व ल्यूट की प्रस्तुति। इसके बाद सुश्री कशिश मित्तल का गायन, उस्ताद निसार खाँ का सितार वादन व श्री अजय प्रसन्ना का बाँसुरी वादन होगा। इस सभा का शुभारंभ ध्रुपद केन्द्र के ध्रुपद गायन से होगा।

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