तानसेन समारोह-2018
(प्रात:कालीन सभा - 28
दिसम्बर)
सर्द
मौसम में मीठी-मीठी राग रागनियों से जले सुरों के अलाव
ग्वालियर
28 दिसम्बर 2018/ भारतीय शास्त्रीय संगीत के अमर गायक तानसेन की याद में आयोजित हो रहे सालाना
महोत्सव “तानसेन समारोह” में शुक्रवार को
सुबह से ही हल्की-हल्की सर्द हवा चल रही थी। राग-मनीषियों ने जब मीठी-मीठी
राग-रागनियाँ छेड़ीं तो सुरों के ऐसे अलाव जले कि रसिक सर्दी का अहसास ही भूल गए।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के इस सर्वाधिक प्रतिष्ठित पाँच दिनी महोत्सव के चौथे दिन
की प्रात:कालीन सभा में एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियाँ हुईं। तानसेन समाधि परिसर में अस्सी
खम्बा की बावड़ी की थीम पर बने भव्य एवं आकर्षक मंच से “नाद ब्रम्ह” के शीर्षस्थ साधक
सुर सम्राट तानसेन को स्वरांजलि अर्पित कर रहे हैं।
शुक्रवार की प्रातःकालीन एवं
तानसेन समारोह की छठी सभा का आगाज़ पारंपरिक ढंग से ध्रुपद गायन के साथ हुआ। स्थानीय
सारदा नाथ मंदिर संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों एवं आचार्यों ने राग "तोड़ी''
और चौताल में निबद्ध तानसेन रचित ध्रुपद रचना प्रस्तुत की। बंदिश के बोल थे
"महादेव आदि देव"।
"जा जा रे जा रे कगवा..."
दुनियाभर में विख्यात पं जसराज
की गायिकी के प्रतिनिधि इंदौर से आए श्री गौतम काले ने सुर सम्राट की दहलीज पर जब
तीन ताल में छोटा ख्याल " जा जा रे जा रे कगवा" का गायन किया तो गुणीय रसिक
विरह रस में डूब गए। उन्होंने राग "विलासखानी" तोड़ी में एक ताल में निबद्ध
बड़ा ख्याल " श्री कामेश्वरी..." की प्रस्तुति से अपना गायन शुरू किया। श्री
काले ने अपने गुरु पं जसराज के भजन "बृज बसंत नव नित चोर" की सुमधुर प्रस्तुति
से माहौल को भक्तिमय बना दिया। उनके साथ तबला संगत पं मुकुंद भाले और हारमोनियम संगत
श्री विवेक जैन ने की। शुक्रवार की सभा में श्री काले की पहले कलाकार के रूप में
प्रस्तुति हुई।
सुरबहार से झरी मीठे मीठे सुरों की
फुहार..
प्रतिष्ठित सुरबहार वादक पं
सौरवव्रत की अंगुलियाँ जब सुरबहार वाद्य पर थिरकीं तो ऐसा लगा मानो वातावरण में मीठे
मीठे सुरों की फुहार हो रही है । भोपाल से पधारे सौरवव्रत चक्रवर्ती ने अपने वादन के
लिए राग "ललित" का चयन किया। यह राग अत्यंत मधुर राग है और इससे अत्यंत खुशनुमा
वातावरण निर्मित होता है। इस राग में सौरवव्रत के सुरबहार वादन में सिलसिलेवार बढ़त
कमाल की रही। इसके बाद उन्होंने अलाप जोड़ झाला में पखावज के साथ लयकारी का सुंदर प्रयोग
किया। उनके साथ श्री अखिलेश गुंदेचा की पखावज संगत सुनते ही बन रही थी। यह प्रस्तुति
चौताल में थी। इसी कड़ी में उन्होंने राग "गूजरी तोड़ी" द्रुत लय सूल ताल में
वादन किया। शुक्रवार की प्रातःकालीन सभा में पं चक्रवर्ती की दूसरे कलाकार के रूप में
प्रस्तुति हुई।
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ज्योति अय्यर की ख्याल गायिकी से खिले
सुर..
शुक्रवार की प्रातःकालीन सभा
में तीसरे कलाकार के रूप में भोपाल से पधारीं डॉ ज्योति फगरे अय्यर की प्रस्तुति हुई।
ग्वालियर-जयपुर घराने की प्रतिभावान गायिका डॉ ज्योति ने अपने गायन के लिए दक्षिण भारत
का राग " सालग वराली" चुना। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश कीं। विलंबित
एक ताल में बड़ा ख्याल के बोल थे " आज बधाई बाजे"। इसके बाद उन्होंने तीन
ताल में निबद्ध छोटा ख्याल " मैं तो न मानूं तेरी बात पियरवा" का गायन किया।
उनके गायन में सुर लगाने के अंदाज से ग्वालियर घराने की गायिकी का आभास स्पष्टतः हो
रहा था। राग के विस्तार से सुर खिल उठे और तानों की अदायगी भी शानदार रही। उन्होंने
कबीर रचित भजन" करमन की गति न्यारी....." सुनाकर अपने गायन को विराम
दिया। उनके साथ तबले पर उनके पति श्री बालकृष्ण अय्यर ने और हारमोनियम पर उस्ताद जमीर
खां ने कुशल संगत की।
तबला-पखावज की जुगलबंदी ने बांधा
समा..
प्रात:कालीन सभा की अंतिम प्रस्तुति
के रूप में मंच पर तबला और पखावज की जुगलबंदी हुई। देश के सुप्रतिष्ठित तबला वादक
उस्ताद निसार हुसैन खाँ एवं पखावज वादक श्री दयानेश्वर देशमुख के साथ सारंगी पर लेहरे
के लिए श्री अनिश मिश्रा थे। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में प्रतिष्ठित इन दोनों वादकों
ने अपने वादन के लिए 16 मात्राओं का चयन किया। पखावज- तबला जुगलबंदी में परन , कायदा
,पेशकार व अजराडा घराने की विभिन्न बंदिशों का समावेश था । दो अलग- अलग उम्र के कलाकारों
ने बडी शिद्दत से वादन किया और कला रसिकों को अभिभूत कर दिया। उनका कठिन
लयकारीयुक्त वादन अति उत्तम था। उनकी प्रस्तुति सुनने श्रोताओं में बडे नामचीन
कलाकारों के साथ रसिक श्रोता भारी संख्या में उपस्थित थे। यह जुगलबंदी श्रोताओं को
लम्बे समय तक याद रहेगी।
आज सुर सम्राट तानसेन की जन्मस्थली
बेहट में सजेगी संगीत सभा
तानसेन समारोह की आठवीं संगीत सभा सुर सम्राट तानसेन की
जन्मस्थली बेहट में 29 दिसम्बर को प्रात:काल 10 बजे झिलमिल नदी के किनारे सजेगी।
इस सभा में उस्ताद सलमान खाँ का सारंगी वादन, श्री के. दामोदर राव का गायन, श्री
समित कुमार मलिक का ध्रुपद गायन, श्री हितेन्द्र कुमार श्रीवास्तव का तबला वादन
तथा सुश्री संध्या तिवारी बापट की स्वर श्रृंगार संगीत संस्था का वृंद वादन होगा। सभा
के प्रारंभ में तानसेन स्मारक केन्द्र बेहट एवं महारूद्र मण्डल संगीत महाविद्यालय ग्वालियर
का ध्रुपद गायन होगा।
अंतिम सभा में किला प्राचीर से गूँजेंगी
स्वर लहरियाँ
इस साल के तानसेन समारोह की अंतिम संगीत सभा किला स्थित गूजरी
महल परिसर में 29 दिसम्बर को सायंकाल 7 बजे सजेगी। इस सभा में विश्व संगीत के तहत
उस्ताद अना तनवीर यू.के. का हार्प वादन, सुश्री भारती सिंह राजपूत का गायन, सुश्री
वर्षा अग्रवाल का संतूर वादन तथा सुश्री शुभ्रा गुहा का गायन होगा । सभा की शुरूआत
ध्रुपद केन्द्र एवं साधना संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन से होगी।
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